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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान


दस


हनुमान आंखों से ओझल हो गए तो पीछे एक सन्नाटा-सा छा गया। अंगद बड़ी देर तक एक शिला पर बैठे समुद्र में जाने क्या देखते रहे। वे स्वयं ही समझ नहीं पा रहे थे कि वे कुछ सोच भी रहे हैं या नहीं। मन और शरीर पर जैसे तन्द्रा-सी छा गई थी। समुद्र उनके सामने था भी, और नहीं भी था। वे स्वयं शिला पर बैठे भी थे, और नहीं भी थे।

सारे दल में सबसे पहले जाम्बवान सक्रिय हुए, ''युवराज!''

अंगद की आकृति पर कुछ जीवन्त भाव उभरे। उन्होंने दो-चार बार सायास आंखें झपककर  स्वयं को अपने वर्तमान परिवेश के प्रति जागरूक बनाया। सबकी प्रश्न-भरी दृष्टि जाम्बवान् की ओर उठी।

''युवराज! हनुमान चला गया है।'' जाम्बवान् बड़े धीमे स्वर में बोले, ''अब जब तक वह लौट नहीं आता, तब तक न हमारी कोई सहायता कर पाएगा, न हम उसकी।''

''ठीक है तात जाम्बवान्!'' अंगद पूर्णतः सजग हो उठे, ''यद्यपि दल का नेता मैं हूं; किन्तु अब तक नेतृत्व हनुमान ही कर रहे थे...।''

''मेरा अभिप्राय यह नहीं था युवराज।''

''न भी रहा हो। अंगद मुस्कराए,'' किन्तु सत्य यही है। कोई कुछ नहीं सोचता था तो भी हनुमान कुछ-न-कुछ सोच लेते थे। मैं आपका महत्त्व कम नहीं कर रहा तात जाम्बवान्।...

''मैं समझ रहा हूं युवराज।'' जाम्बवान् मुस्कराए, ''मेरा महत्त्व कम होता हो या अधिक, सत्य यही है।''

''अब?''

''हम राक्षसी शासन के केन्द्र के बहुत निकट हैं।'' जाम्बवान् धीरे से बोले, ''हमें कुछ अधिक समय तक यहां टिकना भी पड़ सकता है। हम हाथों पर हाथ धरे नहीं बैठे रह सकते।''

अंगद उठ खड़े हुए, ''आप ठीक कह रहे हैं। लंका तक पहुंचने में जाने हनुमान को कितना समय लगे। यदि रात से पूर्व पहुंच भी जाएं तो रात-भर वहां विश्राम करेंगे। कल खोज पर निकलेंगे। रात को फिर विश्राम कर चलें तो परसों संध्या तक यहां पहुंचना चाहिए...।''

''हां,'' जाम्बवान् बोले ''चरम सफलता की स्थिति में इतना समय लगना चाहिए।'' अंगद कुछ नहीं बोले। उन्होंने शेष साथियों की ओर पग बढ़ा दिए। जाम्बवान् पीछे चल पड़े।

विचारों में लीन अंगद एक शिला पर जा बैठे। उन्हें आया देख अन्य लोग भी आसपास घिर आए।'' और यदि चरम सफलता की स्थिति न हुई?'' सहसा अंगद ने जाम्बवान् की ओर देखा।

''अशुभ बोलने के लिए मुझे क्षमा किया जाए युवराज!'' जाम्बवान् संकुचित स्वर में बोले, ''किन्तु ऐसे अभियानों के सन्दर्भ में सम्भावनाओं के प्रत्येक पक्ष पर पूर्व चिन्तन कर हमें सम्भावित परिणामों का साक्षात्कार करने के लिए प्रस्तुत रहना चाहिए।''

''जाम्बवान् ठीक कह रहे हैं।'' नील ने अपनी सहमति प्रकट की।

''कहिए तात!'' अंगद का स्वर कोमल, किन्तु चिन्ता में डूबा हुआ था, ''चरम असफलता की स्थिति भी हो सकती है युवराज!'' जाम्बवान् धीमे स्वर में बोले, ''हनुमान की शक्ति समाप्त हो जाए तो वे समुद्र तल में समा सकते हैं। कोई भयंकर जल-जीव उनका भक्षण कर सकता है।

राक्षसों के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो सकते हैं। उन्हें बन्दी कर राक्षस उनका वध भी कर सकते हैं...।"

"ऐसी स्थिति में हमें क्या करना होगा?" तार ने पूछा।

"ऐसी स्थिति में भी हमें स्वयंप्रभा द्वारा संरक्षित नगरी की ओर नहीं लौटना होगा।" अंगद का स्वर कुछ कठोर था, "यदि हनुमान के देहावसान की निश्चित सूचना मिल जाए तो सागर को तैरकर मैं स्वयं देवी वैदेही की खोज में जाऊंगा।"

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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